CHAPTER -4 एही ठैयाँ झुलनी
हेरानी हो रामा!
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. हमारी आजादी की
लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस
कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर- भारत की आजादी की लड़ाई में हर
धर्म और हर वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। यही एकता भारतवासियों की
सच्ची ताकत थी। प्रस्तुत कहानी ‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ कहानी भी एक
गौनहारिन (गाना गाने तथा नाचकर लोगों का मनोरंजन करने वाली) दुलारी के मूक योगदान
को रेखांकित करती है। टुन्नू से प्रेरित होकर दुलारी भी रेशम छोड़कर खद्दर धारण कर
लेती है। वह अंग्रेज सरकार के मुखबिर फेंकू सरदार की लाई विदेशी धोतियों का बंडल
विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए दे देती है। दुलारी का यह कदम क्रांति का
सूचक है। यदि दुलारी जैसी समाज में उपेक्षित मानी जाने वाली महिला, जो पैसे के
लिए तन का सौदा करती है, वह ऐसा कदम उठाती है तो इसका कैसा व्यापक
प्रभाव हुआ होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लेखक ने
इस कहानी में बड़ी कुशलता से इस योगदान को उभारा है।
प्रश्न 2. कठोर हृदयी
समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर- दुलारी अपने कर्कश स्वभाव के लिए
प्रसिद्ध थी। बात-बात पर तीर-कमान की तरह ऐंठने वाली दुलारी के मन में टुन्नू के
लिए कोमल भाव,
करुणा
और आत्मीयता उत्पन्न हो चुकी थी, जो अव्यक्त थी और वह अनुभव कर रही थी कि टुन्नू
के प्रति जो उसने उपेक्षा दिखाई थी वह कृत्रिम थी और उसके मन के कोने में टुन्नू
का आसन स्थापित हो गया था। इसी कारण नए-नए वस्त्रों के प्रति मोह रखने वाली दुलारी
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली को विदेशी वस्त्रों का बंडल दे देती है।
उसके अंदर पनप रहा आत्मीय भाव टुन्नू की मृत्यु पर छटपटा उठा और उसकी दी गई खादी
की धोती को पहनकर टुन्नू के प्रति आत्मीय संबंध को प्रकट कर विचलित हो उठी।
प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी
गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और
परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर कजली लोकगायन की एक शैली है। इसे
भादों की तीज पर गाया जाता है। कजली दंगल में दो कजली-गायकों के बीच प्रतियोगिता
होती थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसके आयोजन के अवसर पर बड़ी भीड़ जुटा करती थी।
इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना होता था। इसके माध्यम से
जन-प्रचार भी किया जाता था। स्वतंत्रता-पूर्व इन अवसरों पर लोगों के बीच देश-भक्ति
की भावना का प्रसार किया जाता रहा होगा। जिस प्रकार आज इस प्रकार के आयोजनों पर
सामाजिक बुराइयों, जैसे-नशा, दहेज, भ्रूण-हत्या
के विरुद्ध प्रचार किया जाता है। कजली दंगल जैसे कुछ परंपरागत लोक-आयोजन
हैं-त्रिंजन (पंजाब), आल्हा-उत्सव (राजस्थान), रागनी-प्रतियोगिता
(हरियाणा), फूल
वालों की सैर (दिल्ली) आदि। इन सब आयोजनों में क्षेत्रीय लोक-गायकी का प्रदर्शन
होता है। लोक-गायक इनमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट
कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन
को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले
सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अपनी विशिष्टताओं जैसे-कजली गायन में
निपुणता, देशभक्ति
की भावना, विदेशी
वस्त्रों का त्याग करने जैसे कार्यों से अति विशिष्ट बन जाती है। दुलारी की
चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1.
कजली
गायन में निपुणता-दुलारी दुक्कड़ पर कजली गायन की जानी पहचानी गायिका है। वह गायन
में इतनी कुशल है कि अन्य गायक उसका मुकाबला करने से डरते हैं। वह जिस पक्ष में
गायन के लिए खड़ी होती है, वह पक्ष अपनी जीत सुनिश्चित मानता है।
2.
स्वाभिमानी-दुलारी
भले ही गौनहारिन परंपरा से संबंधित एवं उपेक्षित वर्ग की नारी है पर उसके मन में
स्वाभिमान की उत्कट भावना है। फेंकू सरदार को झाड़ मारते हुए अपनी कोठरी से बाहर
निकालना इसका प्रमाण है।
3.
देशभक्ति
तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना के कारण
विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।
4.
कोमल
हृदयी-दुलारी के मन में टुन्नू के लिए जगह बन जाती है। वह टुन्नू से प्रेम करने
लगती है। टुन्नू के लिए उसके मन में कोमल भावनाएँ हैं।
इस तरह दुलारी का चरित्र देश-काल के अनुरूप
आदर्श है।
प्रश्न 5. दुलारी का
टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर- दुलारी का टुन्नू से पहली बार
परिचय तीज के अवसर पर आयोजित ‘कजली दंगल’ में हुआ था। इस कजली दंगल का आयोजन
खोजवाँ बाज़ार में हो रहा था। दुलारी खोजवाँ वालों की ओर से प्रतिद्वंद्वी थी तो
दूसरे पक्ष यानि बजरडीहा वालों ने टुन्नू को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाया था। इसी
प्रतियोगिता में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था।
प्रश्न 6. दुलारी का
टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखते लोट?…!” दुलारी
के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण
सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कजली दंगल में सोलह-सत्रह वर्षीय
टुन्नू ने ललकारते हुए दुलारी से कहा कि “रनियाँ ले… S… S… परमेसरी
लोट” (प्रामिसरी नोट) तो उत्तर में दुलारी ने कहा था–“तै सर बउला बोल जिन्नगी में
कब देखले लोट?”
अर्थात
बढ़-चढ़कर मत बोल, तूने नोट कहाँ देखे हैं। उसका कहना था यजमान
करने वाले पिता जी बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे हैं। तेरा नोट से कहाँ वास्ता
पड़ा है?
दुलारी के इस कथ्य में युवावर्ग के लिए संदेश
छिपा है कि उन्हें बढ़-चढ़कर व्यर्थ नहीं बोलना चाहिए। पता नहीं कब पोल खुल जाए।
अतः अपनी औकात के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न 7. भारत के
स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर- भारत के स्वाधीनता आंदोलन में
दुलारी और टुन्नू ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों का
संग्रह करके उसकी होली जलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। उसने आगे बढ़-चढ़कर विदेशी
वस्त्र इकट्टे किए। इसी आंदोलन के सिलसिले में वह पुलिस की क्रूर पिटाई का शिकार
हुआ। परिणामस्वरूप वह बलिदान हो गया।
दुलारी ने टुन्नू की इस देशभक्ति का सम्मान
करने के लिए टुन्नू द्वारा भेंट की गई खादी की साड़ी पहनी। उसे प्रेमी के रूप में
स्वीकार किया तथा सरकारी कार्यक्रम में उसके बलिदान पर आँसू बहाए। उसने सरेआम यह
गीत गाया कि ‘एही। तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’। इसी स्थान पर मेरे नाक की नथ गिर
गई है। मेरा प्रिय खो गया है।
प्रश्न 8. दुलारी और
टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह
प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
उत्तर- दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा और
मधुर स्वर पर मुग्ध थी। यौवन के अस्ताचल पर खड़ी दुलारी के हृदय में कहीं उसने
अपना स्थान बना लिया था। टुन्नू भी उस पर आसक्त था परंतु उसके आसक्त होने का संबंध
शारीरिक न होकर आत्मिक था। अतः दोनों के मध्य संबंध का कारण कला और कलाकार मन ही
थे । दुलारी के मन में टुन्नू के प्रति करुणा थी। टुन्नू ने आबरवाँ की जगह खद्दर
का कुरता, लखनवी
दोपलिया की जगह गाँधी टोपी पहनना शुरू कर दिया। और दुलारी को गाँधी आश्रम की बनी
धोती देता है। अंत में देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हो प्राण न्योछावर कर
देता है। इन सबसे दुलारी भी प्रेरित हो उठती है। दुलारी का देश के दीवानों को
विदेशी नए वस्त्र देना, टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उसकी दी हुईखादी
की धोती पहनकर उसके मरने के स्थान पर जाना और टाउन हॉल में उसकी श्रद्धांजलि में
गाना-सभी देश-प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 9. जलाए जाने वाले
विदेशी वस्त्रों के ढेर से अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा
विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता
है?
उत्तर - स्वयंसेवकों द्वारा फैलाई चद्दर पर
जो विदेशी वस्त्र फेंके जा रहे थे, वे अधिकतर फटे-पुराने थे। दुलारी
ने फेंकू द्वारा लाई नई साड़ियों का बंडल ही फेंक दिया। यह उसके दृढ़-निश्चय तथा
टुन्नू के प्रति उत्कट प्रेम का परिचायक है।
प्रश्न 10. ‘मन पर किसी का
बस नहीं;
वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस
कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु
उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर- “मन पर किसी को बस नहीं, वह रूप या
उमर का कायल नहीं होता।”—यह टुन्नू के किशोर मन की अभिव्यक्ति है। टुन्नू जहाँ
सोलह-सत्रह वर्षीय किशोर था वही दुलारी यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी। इस तरह तो
टुन्नू का शारीरिक सौंदर्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था।
उसके मन में दुलारी के शरीर के प्रति लोभ नहीं
बल्कि पवित्र तथा सम्मानीय स्नेह था। होली के अवसर पर दुलारी को सूती खादी साड़ी
देने पर दुलारी ने जब उसकी उपेक्षा की तो उसने कहा कि मैं प्रतिदान में तुमसे कुछ
माँगता तो नहीं हूँ।
दुलारी की उपेक्षा के प्रतिक्रिया स्वरूप
टुन्नू के विवेक ने दुलारी के प्रति बढ़ते हुए प्रेम को देश-प्रेम की ओर मोड़
दिया। वह आज़ादी के दीवानों के साथ कार्य करने लगा। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने
वाली टोली में सम्मिलित हो गया। इस देश-प्रेम की भावना के कारण अली सगीर के
गालियाँ देने पर प्रतिवाद करने की हिम्मत कर बैठता है और उसके ठोकर मारने पर
मृत्यु को प्राप्त होता है। इस तरह उसका बलिदान अंग्रेज़ खुफिया पुलिस के रिपोर्टर
का विरोध करने पर हुआ और उसका देश-प्रेम सफल हुआ।
उत्तर- एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो
रामा!’-लोकभाषा में रचित इस गीत के मुखड़े का शाब्दिक भाव है-इसी स्थान पर मेरी
नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीकार्थ बड़ा गहरा है। नाक में पहना जाने वाला लोंग
सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम का लोंग अपने नाक में
पहने। लेकिन मन रूपी नाक में उसने टुन्नू के नाम का लोंग पहन लिया है और जहाँ वह
गा रही है; वहीं
टुन्नू की हत्या की गई है। अतः दुलारी के कहने का भाव है-यही वह स्थान है जहाँ
मेरा सुहाग लुट गया है।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
प्रश्न 1. दुलारी अपने
स्वास्थ्य के प्रति सजग थी। इसके लिए वह क्या करती थी और क्यों ?
उत्तर- दुलारी उन महिलाओं से अलग थी जो
अपने स्वास्थ्य के प्रति असावधान रहती हैं। वह अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखती
थी। इसके लिए नियमपूर्वक कसरत करती और भिगोए हुए चने खाती। दुलारी समाज के उस वर्ग
से संबंधित थी जहाँ गीत गाकर गुजारा करना उनकी रोजी-रोटी का साधन होता है। फेंकू
सरदार जैसे लोगों से स्वयं को बचाने के लिए उसका स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना
आवश्यक था।
प्रश्न 2. टुन्नू दुलारी
के लिए खद्दर की सूती साड़ी लेकर क्यों आया?
उत्तर- टुन्नू सोलह-सत्रह वर्षीय ब्राह्मण
किशोर था, जो
कजली गायन का उभरता कलाकार था। उसके भीतर राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना
उफ़ान पर थी। मलमल के वस्त्र पहनने वाले टुन्नू ने स्वयं भी खादी पहनना शुरू कर
दिया था। वह अपने मन के किसी कोने में दुलारी के लिए कोमल भावनाएँ रखता था। अपने
मूक प्रेम की अभिव्यक्ति करने एवं होली के त्योहार के अवसर पर उपहार देने के लिए
वह खद्दर की सूती साड़ी ले आया।
प्रश्न 3. अपने दरवाजे पर
टुन्नू को खड़ा देख दुलारी ने क्या प्रतिक्रिया प्रकट की और क्यों?
उत्तर टुन्नू को अपने दरवाजे पर खड़ा देख
दुलारी ने पहले तो उससे कहा कि तुम फिर यहाँ टुन्नू? मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना
किया था। उसने जब टुन्नू के मुँह से सालभर के त्योहार की बात सुनी तो वह अत्यंत
क्रोधित हो उठी और टुन्नू को अपशब्द कहने लगी। वास्तव में दुलारी नहीं चाहती थी कि
टुन्नू जैसा किशोर अभी से अपने भविष्य की उपेक्षा करके प्रेम-मोहब्बत के चक्कर में
पड़े।
प्रश्न 4. दुलारी का
उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर टुन्नू चला गया पर इसके बाद दुलारी के मनोभावों में
क्या-क्या बदलाव आए?
उत्तर- दुलारी ने न टुन्नू की लाई खद्दर
की साड़ी स्वीकार की और न उससे उचित व्यवहार किया। इससे आहत होकर उसकी व्यथा आँसू
बनकर टपक पड़ी,
जो
उसके ही पैरों के पास उस साड़ी पर जा गिरी थी। टुन्नू बिना कुछ कहे सीढ़ियाँ उतरता
चला गया और दुलारी उसे देखे जा रही थी, परंतु उसके नेत्रों में कौतुक और
कठोरता का स्थान करुणा की कोमलता ने ग्रहण कर लिया था। उसने भूमि पर पड़ी खद्दर की
धोती उठाई और स्वच्छ धोती पर पड़े काजल से सने आँसुओं के धब्बों को बार-बार चूमने
लगी।
प्रश्न 5. खोजवाँ वालों
ने अपनी ओर से कजली दंगल में किसे खड़ा किया था और क्यों?
उत्तर- खोजवाँ वालों ने कजली दंगल में
अपनी ओर से दुलारी को खड़ा किया। इसका कारण यह था कि दुक्कड़ पर गानेवालियों में
दुलारी बहुत प्रसिद्ध थी। उसे पद्य में सवाल जवाब करने की अद्भुत क्षमता प्राप्त
थी। कजली गानेवाले बड़े-बड़े शायर भी उससे मुकाबला करने से बचते थे। दुलारी जिस ओर
से गायन के लिए खड़ी होती थी, उसकी विजय निश्चित मानी जाती थी।
प्रश्न 6. टुन्नू के
परिवार का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि उसने दुलारी से गायन में मुकाबला
करने का साहस कैसे कर लिया?
उत्तर- टुन्नू सोलह-सत्रह वर्षीय गौरवर्ण
वाला दुबला-पतला ब्राह्मण युवक था। उसके पिता घाट पर बैठकर और कच्चे महाल के
दस-पाँच घरों में यजमानी करते हुए, सत्यनारायण की कथा से लेकर श्राद्ध
और विवाह तक कराकर कठिनाई से गुजारा कर रहे थे। इधर टुन्नू को आवारा लड़कों की
संगति में शायरी का चस्का लगा। उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और शीघ्र ही
कजली की रचना करने लगा। इसके अलावा वह पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में कुशल था। अपनी
इसी योग्यता पर वह बजरडीहा वालों की तरफ से कजली दंगल में गया और दुलारी से गायन
का मुकाबला कर बैठा।
प्रश्न 7. टुन्नू का गायन
सुनकर खोजवाँ वालों की सोच और दुलारी के व्यवहार में क्या अंतर आया?
उत्तर- खोजवाँ बाजार में आयोजित कजली दंगल
में जब साधारण गाना हो गया तो सवाल-जवाब के लिए दुक्कड़ की आवाज़ सुनाई दी। उधर
विपक्ष से एक युवा गायक गौनहारिनों में सबसे आगे खड़ी दुलारी की ओर हाथ उठाकर
ललकार उठा. “रनियाँ लऽ परमेसरी लोट!” मधुर कंठ से निकले इस गीत को सुनकर खोजवाँ
वालों ने सोचा कि अब उनकी विजय तय नहीं है। उधर तनिक-सी बात में नाराज़ हो जाने
वाली दुलारी टुन्नू का गीत सुनकर अपने स्वभाव के विपरीत मुसकरा रही थी और मुग्ध
होकर गीत सुन रही थी।
प्रश्न 8. कजली दंगल की
मजलिस बदमज़ा क्यों हो गई?
उत्तर- भादों महीने में तीज के अवसर पर
खोजवाँ बाजार के आयोजित कजली दंगल में खोजवाँ वालों ने अपनी ओर से दुलारी। को
बुलाया था और बजरडीहा वालों ने टुन्नू को। इस आयोजन में साधारण गाना पूरा हो जाने
के बाद जब सवाल-जवाब के पद्यात्मक गायन की प्रतियोगिता शुरू हुई तो टुन्नू ने
दुलारी के सवालों का भरपूर जवाब अपने गीत के माध्यम से दिया। दोनों एक-दूसरे के
आक्षेपों का जवाब दे रहे थे। टुन्नू के द्वारा गायन के माध्यम से दिए गए जवाब पर
फेंकू सरदार को गुस्सा आ गया। वह टुन्नू को मारने के लिए लाठी लेकर खड़े हो गए। यह
देख दुलारी ने टुन्नू की रक्षा की। इसके बाद लोगों के बहुत कहने पर उन दोनों में से
किसी ने भी न गाया और मजलिस बदमज़ा हो गई।
प्रश्न 9. टुन्नू की
उपेक्षा करने वाली दुलारी के मन में उसके प्रति कोमल भावनाएँ कैसे पैदा हो गईं?
उत्तर- टुन्नू और दुलारी की प्रथम मुलाकात
खोजवाँ बाजार में गायन के समय हुई थी। उसी समय उसने टुन्नू के हृदय की दुर्बलता का
अनुभव पहली मुलाकात में ही कर लिया था परंतु उसे भावना की लहर मानकर वह टुन्नू की
उपेक्षा करती रही। होली के त्योहार पर जिस भाव से टुन्नू ने उसे उपहार दिया उससे
दुलारी ने समझ लिया कि उसके शरीर के प्रति टुन्नू के मन में कोई लोभ नहीं है। उसकी
आसक्ति का कारण शरीर नहीं आत्मा है। वह अनुभव कर चुकी थी कि उसके हृदय के किसी
कोने पर टुन्नू विराजमान है। इस तरह उसके मन में टुन्नू के प्रति कोमल भावनाएँ
पैदा हो गईं।
प्रश्न 10. होली के दिन
देश के दीवाने अपनी होली किस तरह मनाना चाहते थे? उनके
इस कार्य में दुलारी ने किस तरह सहयोग किया?
उत्तर- होली के दिन देश के दीवाने अपनी
होली कुछ अलग ढंग से ही मनाना चाह रहे थे। इस दिन वे सवेरे से ही जुलूस निकालकर
जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते फिर रहे थे। वे दल बनाकर घूमते हुए
भारत जननि तेरी जय, तेरी जय हो’ का गायन करते हुए लोगों को
उत्साहित कर रहे थे और लोग अपने कुरते, कमीज, टोपी, धोती आदि दे
रहे थे। दुलारी ने भी देश के दीवानों की पुकार सुनकर खिड़की खोली और मैंनचेस्टर
तथा लंकाशायर के मिलों की बनी साड़ियों का नया बंडल फेंककर अपना योगदान दिया।
प्रश्न 11. विदेशी
वस्त्रों का बहिष्कार करने का आह्वान करने वाला दल क्या देखकर चकित रह गया?
अथवा
दुलारी ने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का नाटक
नहीं किया बल्कि सच्चे मन से सहयोग दिया, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने
का आह्वान करने वाले दल के सदस्यों द्वारा उठाई गई चादर पर लोग अपने धोती, साड़ी, कमीज, कुरता, टोपी आदि डाल
रहे थे परंतु जब दुलारी ने बारीक सूत की मखमली किनारे वाली नई कोरी धोतियों का
बंडल फेंका तो चादर सँभालने वाले व्यक्ति चकित रह गए क्योंकि अब तक जिन वस्त्रों
का संग्रह हुआ था वे फटे पुराने थे जबकि नए बंडल की धोतियों की तह भी न खुली थी।
प्रश्न 12. सहायक संपादक
ने अपनी रिपोर्ट में टुन्नू की मौत का उल्लेख किस तरह किया है?
उत्तर- सहायक संपादक ने अपनी रिपोर्ट में
लिखा कि विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाला जुलूस टाउनहाल आकर विघटित हो गया। तब
पुलिस जमादार ने टुन्नू को पकड़ा और गालियाँ दीं, जिसका टुन्नू ने प्रतिवाद किया।
जमादार ने उसे बूट की ठोकर मारी जो पसली में जा लगी। इससे टुन्नू के मुँह से
चुल्लूभर खून निकला। पास ही खड़े गोरे सैनिकों की गाड़ी में टुन्नू को लाद लिया
गया और अस्पताल ले जाने के नाम पर रात्रि आठ बजे वरुणा में प्रवाहित कर दिया गया।
मूल्यपरक प्रश्न
प्रश्न 1. टुन्नू जैसा
साधारण-सा युवक भी देश की स्वाधीनता में अपना योगदान देकर मातृभूमि का ऋण चुकाता
है। टुन्नू के चरित्र से आप किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर- देश को स्वाधीन कराने में देश की
आम जनता और टुन्नू जैसे साधारण से युवकों का भी योगदान है जो भिन्न-भिन्न तरीके से
मातृभूमि का ऋण चुकाते हैं। टुन्नू एक ओर विदेशी वस्त्रों का त्याग करता है तो
दूसरी ओर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने वाले देश भक्तों के साथ जुलूस में
बढ़-चढ़कर भाग लेता है जो बाद में उसकी मौत का कारण भी बन जाता है। टुन्नू के
चरित्र से हम निम्नलिखित जीवन-मूल्यों की सीख ले सकते हैं-
1.
देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता- टुन्नू
के मन में राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना भरी है। वह विदेशी वस्त्रों का
त्यागकर खद्दर धारण कर लेता है और देश को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान देता है।
इससे हमें भी देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता को बनाए रखने की सीख मिलती है।
2.
भारतीय वस्तुओं से लगाव- टुन्नू
स्वयं विदेशी वस्त्रों का त्याग ही नहीं करता वरन विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने
वाले जुलूस में शामिल होकर दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा देता है। इससे हमें
भी भारतीय वस्तुओं को अपनाने की सीख मिलती है।
3.
स्वाभिमानी होना- टुन्नू
पुलिस जमादार अली सगीर की गालियाँ सुन नहीं पाता और तुरंत प्रतिवाद कर अपने
स्वाभिमान का परिचय देता है। इससे हमें भी स्वाभिमानी बनने की सीख मिलती है।
प्रश्न 2. दुलारी का
चरित्र समाज के उपेक्षित उस वर्ग का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है जो देश की आज़ादी
में अपने ढंग से अपना योगदान देता है। इस कथन के आलोक में स्पष्ट कीजिए कि दुलारी
के चरित्र से आप किन-किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर दुलारी समाज के उस वर्ग से संबंध
रखती है जो सभा,
उत्सव
जैसे आयोजनों में गीत (लोकगीत) गाकर अपनी आजीविका चलाती है। समाज इस वर्ग को अच्छी
दृष्टि से नहीं देखता है और समाज के कुछ लोग इन पर कुदृष्टि रखते हैं। उन्हें
पुरुषों की उस घटिया सोच का भी सामना करना पड़ता है जो महिलाओं के स्वतंत्र जीने
को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते हैं। दुलारी भी इन बातों से अनभिज्ञ नहीं है, इसलिए वह
अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखना चाहती है ताकि फेंकू सरदार जैसे लोगों का
समय-असमय मुकाबला कर सके। वह टुन्नू की देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता से प्रभावित होकर
विदेशी वस्त्रों का त्याग कर देती है। दुलारी के चरित्र से हमें स्वाभिमान बनाए
रखने, समय
पर उचित निर्णय लेने, राष्ट्रीयता की भावना बनाए रखने, देश प्रेम
प्रकट करने का साहस रखने जैसे मूल्यों की सीख मिलती है।