CHAPTER -2 जॉर्ज पंचम की नाक
CHAPTER-
2
जॉर्ज पंचम की नाक
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. सरकारी तंत्र
में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी
किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर- सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की
नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है, उससे उनकी
गुलाम मानसिकता का बोध होता है। इससे पता चलता है कि वे आज़ाद होकर भी अंग्रेजों
के गुलाम हैं। उन्हें अपने उस अतिथि की नाक बहुत मूल्यवान प्रतीत होती है जिसने
भारत को गुलाम बनाया और अपमानित किया। वे नहीं चाहते कि वे जॉर्ज पंचम जैसे लोगों
के कारनामों को उजागर करके अपनी नाराजगी प्रकट करें। वे उन्हें अब भी सम्मान देकर
अपनी गुलामी पर मोहर लगाए रखना चाहते हैं।
इस पाठ में ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा पर भी
प्रश्नचिह्न लगाया गया है। लेखक कहना चाहता है कि अतिथि का सम्मान करना ठीक है, किंतु वह
अपने सम्मान की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 2. रानी एलिजाबेथ
के दरज़ी को परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत
ठहराएँगे?
उत्तर- दरज़ी रानी एलिज़ाबेथ के दौरे से
परिचित था। रानी पाक, भारत और नेपाल का दौरा करेंगी, तो उस देश के
अनुकूल वेश धारण करेंगी। दरज़ी परेशान था कि कौन-कौन से देश में कैसी ड्रेस
पहनेंगी? इस
बात की दरेज़ी को, कोई जानकारी नहीं
थी, न कोई निर्देश था।
उसकी चिंता अवश्य ही विचारणीय थी। प्रशंसा की
कामना हर व्यक्ति को होती है। उसका सोचना था जितना अच्छा वेश होगा उतनी ही मेरी
ख्याति होगी। इस तरह उसकी चिंता उचित ही थी।
प्रश्न 3. ‘और देखते ही
देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’-नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या
प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर- नई दिल्ली के कायापलट के लिए सबसे
पहले गंदगी के ढेरों को हटाया गया होगा। सड़कों, सरकारी इमारतों और पर्यटन-स्थलों
को रंगा-पोता और सजाया-सँवारा गया होगा। उन पर बिजलियों का प्रकाश किया गया होगा।
सदा से बंद पड़े फव्वारे चलाए गए होंगे। भीड़भाड़ वाली जगहों पर ट्रैफिक
पुलिस का विशेष प्रबंध किया गया होगा।
प्रश्न 4. आज की
पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन
का दौर चल पड़ा है-
(क) इस
प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस
तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर- (क) आज की पत्रकारिता में चर्चित
हस्तियों के पहनावे, खान-पान संबंधी आदतों को व्यर्थ ही वर्णन करने का
दौर चल पड़ा है,
इससे
जन-सामान्य की आदतों में भी परिवर्तन आ गया है। इस प्रकार की पत्रकारिता के प्रति
मेरे विचार हैं कि-
1.
इस
तरह की बातों को इकट्ठा करना और बार-बार दोहराकर महत्त्वपूर्ण बना देना पत्रकारिता
का प्रशंसनीय कार्य नहीं है।
2.
पत्रकारिता
में ऐसे व्यक्तियों के चरित्र को भी महत्त्व दे दिया जाता है, जो अपने
चरित्र पर तो कभी खरे उतरते नहीं हैं पर चर्चा में बने रहने के कारण असहज कार्य
करते हैं जो पत्रों में छा जाते हैं।
(ख)
चर्चित व्यक्तियों की पुनः-पुनः की व्यर्थ-चर्चाएँ युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव
डालती हैं। उन चर्चित व्यक्तियों की नकल करने का प्रयास, उन्हीं की
संस्कृति में जीने की बढ़ती हुई इच्छाएँ युवा पीढ़ी के मन में बलवती रूप धारण कर
लेती हैं। जिससे उनके ऊपर दुष्प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है। आने सामाजिक व्यवहार
और लक्ष्य को भूल व्यर्थ की सजावट में समय और धन खर्च करने लगती है।
प्रश्न 5. जॉर्ज पंचम की
लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर- जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को लगाने
के लिए मूर्तिकार ने अनेक प्रयत्न किए। उसने सबसे पहले उस पत्थर को खोजने का प्रयत्न
किया जिससे वह मूर्ति बनी थी। इसके लिए पहले उसने सरकारी फाइलें ढूँढवाईं। फिर
भारत के सभी पहाड़ों और पत्थर की खानों का दौरा किया। फिर भारत के सभी महापुरुषों
की मूर्तियों का निरीक्षण करने के लिए पूरे देश का दौरा किया। अंत में जीवित
व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर लगा दी।
प्रश्न 6. प्रस्तुत कहानी
में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण
के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका।’
पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर- पाठ में आईं ऐसी व्यंग्यात्मक
घटनाएँ वर्तमान व्यवस्था पर चोट करती हैं
1.
शंख
इंग्लैंड में बज रहा था, गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।
2.
दिल्ली
में सब था… सिर्फ जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक नहीं थी। |
3.
गश्त
लगती रही और लाट की नाक चली गई।
4.
देश
के खैरख्वाहों की मीटिंग बुलाई गई।
5.
पुरातत्व
विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए, पर कुछ पता नहीं चला।
प्रश्न 7. नाक मान-सम्मान
व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।
उत्तर - इस पाठ में नाक मान-सम्मान और
प्रतिष्ठा की परिचायक है। जॉर्ज पंचम भारत पर विदेशी शासन के प्रतीक हैं। उनकी कटी
हुई नाक उनके अपमान की प्रतीक है। इसका अर्थ है कि आज़ाद भारत में जॉर्ज पंचम की
नीतियों को भारतविरोधी मानकर अस्वीकार कर दिया गया।
रानी एलिजाबेथ के आगमन से सभी सरकारी अधिकारी
अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध अपनी नाराजगी व्यक्त करने की बजाय उनकी आराधना में जुट
गए। जॉर्ज पंचम का भारत की धरती से कोई अनुराग नहीं था। उनकी आस्था पूरी तरह
विदेशी थी। उनकी मूर्ति का पत्थर तक विदेशी था। फिर उनका मान-सम्मान किसी भारतीय
नेता या बलिदानी बच्चों से भी अधिक नहीं था। उनकी नाक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों
की नाक से नीची थी। इसके बावजूद सरकारी अधिकारी उसकी नाक बचाने में लगे रहे।
लाखों-करोड़ों रुपया बर्बाद कर दिया। यहाँ तक कि अंत में किसी जीवित व्यक्ति की
नाक काटकर जॉर्ज पंचम की नाक पर बिठा दी गई। यह पूरी भारतीय जनता के आत्मसम्मान पर
चोट है। |
प्रश्न 8. जॉर्ज पंचम की
लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट
न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।
उत्तर- अखबारों में जिंदा नाक लगने की खबर
को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया कि जिंदा नाक को भी शब्द और अर्थ का घालमेल कर
पत्थरवत् बना दिया। अखबार वालों ने खबर छापी कि-जॉर्ज पंचम की जिंदा नाक लग गई
है-यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती है। इस तरह जिंदा नाक लगने की खबर को
शब्दों में ताल-मेल वाक्पटुता से छिपा लिया।
प्रश्न 9. अखबारों ने
जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर- अखबारों ने जॉर्ज पंचम की नाक की
जगह जिंदा नाक लगाने की खबर को बड़ी कुशलता से छिपा लिया। उन्होंने बस इतना ही
छापा-‘नाक का मसला हल हो गया है। राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट
के नाक लग रही है।
प्रश्न 10. नई दिल्ली में
सब था … सिर्फ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर- नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक
नहीं थी-यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा
संपन्न हो चुका था, कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल
आत्मसम्मान का,
स्वाभिमान
का। संपन्न होने पर भी देश परतंत्रता की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सका है।
अंग्रेज का नाम आते ही हीनता का भाव उत्पन्न होता था कि ये हमारे शासक रहे हैं।
गुलामी का कलंक हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में
सिर्फ नाक नहीं भी।
प्रश्न 11. जॉर्ज पंचम की
नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर- उस दिन सभी अखबार इसलिए चुप थे
क्योंकि भारत में न तो कहीं कोई अभिनंदन कार्यक्रम हुआ, न
सम्मान-पत्र भेंट करने का आयोजन हुआ। न ही किसी नेता ने कोई उद्घाटन किया, न कोई फीता
काटा गया, न
सार्वजनिक सभा हुई। इसलिए अखबारों को चुप रहना पड़ा। यहाँ तक कि हवाई अड्डे या
स्टेशन पर स्वागत समारोह भी नहीं हुआ। इसलिए किसी
नेता का ताजा चित्र नहीं छप सका।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
प्रश्न 1. एलिजाबेथ के
भारत आगमन पर इंग्लैंड और भारत दोनों स्थानों पर हलचल मच गई। उनके इस दौरे का असर
किन-किन पर हुआ?
उत्तर रानी एलिजाबेथ के आगमन से इंग्लैंड
और भारत दोनों ही जगहों पर हलचल बढ़ गई। उनके इस दौरे से प्रभावित होने वालों में
विभिन्न समाचारपत्र, पूरी दिल्ली, एलिजाबेथ का दरजी, विभिन्न
विभागों के अधिकारी, कर्मचारी और मंत्रीगण विशेष रूप से प्रभावित
हुए। अखबारों में रानी एलिजाबेथ, प्रिंस फिलिप, उनके नौकरों, बावर्चियों, अंगरक्षकों
तथा कुत्तों की जीवनी तथा फ़ोटो छपे राजधानी दिल्ली में तहलका मचा हुआ था। सरकारी
तंत्र दिल्ली की साफ़ तथा सुंदर तस्वीर प्रस्तुत करना चाहता था। वे सड़कों की
साफ़-सफ़ाई, सरकारी
इमारतों को साफ़ कर उनका रंग-रोगन कर चमकाने तथा राजमार्ग को चमकाने के लिए परेशान
थे। इसके अलावा अन्य तैयारियों के लिए अफ़सरों तथा मंत्रियों की परेशानी तो देखते
ही बनती थी क्योंकि जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक जोड़ने का प्रबंध उन्हें जो
करना था।
प्रश्न 2. मूर्तिकार की
उन परेशानियों का वर्णन कीजिए जिनके कारण उसे ऐसा हैरतअंगेज़ निर्णय लेना पड़ा। वह
निर्णय के या था?
उत्तर- जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक ठीक
करने के लिए पहले तो मूर्तिकार पहाड़ी प्रदेशों और पत्थर की खानों में उसी किस्म
का पत्थर तलाशता रहा। ऐसा करने में असफल रहने पर उसने देश के विभिन्न भागों-मुंबई, गुजरात, बिहार, पंजाब, बंगाल, उड़ीसा आदि
भागों के शहीद नेताओं की नाक लिया ताकि उनमें से कोई नाक काटकर लगा सके। यहाँ भी असफल
रहने पर उसने बिहार सचिवालय के सामने शहीद बच्चों की मूर्तियों की नाकों की नाप
लिया पर यह भी असफल रहा तब उसने ऐसा हैरतअंगेज़ निर्णय लिया। मूर्तिकार द्वारा
लिया गया वह हैरतअंगेज़ निर्णय यह था कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काट
ली जाए और जॉर्ज पंचम की टूटी नाक पर लगा दी जाए।
प्रश्न 3. रानी एलिजाबेथ
के भारत दौरे के समय अखबारों में उनके सूट के संबंध में क्या-क्या खबरें छप रही
थीं?
उत्तर- रानी एलिजाबेथ के भारत दौरे के समय
भारतीय अखबारों में जो खबरें छप रही थीं उनमें ऐसी खबरें अधिक प्रकाशित होती थीं, जिन्हें लंदन
के अखबार एक दिन पूर्व ही छाप चुके होते थे। इन खबरों के बीच रानी एलिजाबेथ के सूट
की चर्चा भी प्रमुखता के साथ रहती थी। अखबारों ने प्रकाशित किया कि रानी ने एक ऐसा
हलके नीले रंग का सूट बनवाया है, जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मँगाया गया है
जिस पर करीब चार सौ पौंड का खर्च आया है।
प्रश्न 4. जॉर्ज पंचम की
नाक’ नामक पाठ में भारतीय अधिकारियों, मंत्रियों और कार्यालयी कार्य
प्रणाली पर कठोर व्यंग्य किया गया है। इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ
व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को प्रतिष्ठा बनाकर
मंत्रियों एवं सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया गया है।
एलिजाबेथ के भारत आगमन पर राजधानी में तहलका मचने, अफसरों और मंत्रियों के परेशान
होने की स्थिति देखकर यही लगता है कि जैसे आज भी हम अंग्रेजों के गुलाम हों। देश
के सम्मान से सरकारी कर्मचारियों का कुछ लेना-देना नहीं होता है। यदि उनकी
स्वार्थपूर्ति हो रही हो तो वे देश के सम्मान को ठेस पहुँचाने में जरा-सा भी संकोच
नहीं करते हैं। येन-केन प्रकारेण स्वार्थ सिधि ही उनका उद्देश्य बनकर रह गया है।
प्रश्न 5. जॉर्ज पंचम की
लाट की टूटी नाक लगाने के क्रम में पुरातत्व विभाग की फाइलों की छानबीन की ज़रूरत
क्यों आ गई? इस छानबीन का क्या परिणाम रहा?
उत्तर जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक
लगाने के क्रम में पुरातत्व विभाग की फाइलों की छानबीन की ज़रूरत इसलिए आ गई
क्योंकि इन्हीं फाइलों में प्राचीन वस्तुओं, इमारतों, लाटों तथा
महत्त्वपूर्ण वस्तुओं से संबंधित विस्तृत जानकारी सजोंकर रखी जाती है, जिससे समय
आने पर इनसे देश के इतिहास संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सके। इन
फाइलों की खोजबीन इसलिए की जा रही थी जिससे मूर्तिकार लाट के पत्थर का मूलस्थान, लाट कब बनी, कहाँ बनी, किसके द्वारा
बनाई गई आदि संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर उसकी टूटी नाक की मरम्मत कर
सके।
प्रश्न 6. इस छानबीन का
कोई सकारात्मक परिणाम न निकला, क्योंकि फाइलों में ऐसा कुछ न मिला।
भारतीय हुक्मरान अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते नज़र आते हैं। जॉर्ज पंचम की
नाक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ से ज्ञात
होता है कि सरकारी कार्यालय के बाबू अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते नज़र आते
हैं। हर कोई इस जिम्मेदारी से बचना चाहता है। मूर्तिकार जब कहता है कि उसे यह
मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी तथा उसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया, इसका जवाब
देने के लिए भारतीय हुक्मरान एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं और अंत में निर्णय कर
यह काम एक क्लर्क को सौंप देते हैं।
प्रश्न 7. जॉर्ज पंचम की
नाक’ पाठ के आधार पर बताइए पाठ से भारतीय अधिकारियों की किस मानसिकता की झलक मिलती
है?
उत्तर ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ में
सरकारी तंत्र के अफसरों की मानसिक परतंत्रता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
ये अफसरगण मानसिक गुलामी में जीते हुए एलिजाबेथ को खुश करने के लिए बदहवास से
दिखाई देते हैं। उन्हें राष्ट्र के शहीद, देशभक्त नेताओं तथा बच्चों के
सम्मान का ध्यान नहीं रह जाता और वे लाट पर जिंदा नाक लगाने में तनिक भी आपत्ति
नहीं दिखाते हैं। इस असर पर वे देश की मर्यादा और भारतीयों के स्वाभिमान को ताक पर
रख देते हैं।
प्रश्न 8. इंग्लैंड के
अखबारों में छपने वाली उन खबरों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण हिंदुस्तान में सनसनी
फैल रही थी?
उत्तर- महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन के
समय इंग्लैंड के अखबारों में तरह-तरह की खबरें छप रही थीं, जैसे- रानी
ने एक ऐसा हलके नीले रंग का सूट बनवाया है जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से
मँगवाया गया है और उस पर करीब चार सौ पौंड खरचा आया है। रानी एलिजाबेथ की
जन्मपत्री, प्रिंस
फिलिप के कारनामे, उनके नौकरों बावर्चियों और खानसामों तथा
अंगरक्षकों की पूरी जीवनियों के साथ शाही महल में रहने वाले कुत्तों तक की खबरें
छप रही थीं। ऐसी खबरों के कारण हिंदुस्तान में सनसनी फैल रही थी।
प्रश्न 9. जॉर्ज पंचम की
नाक की सुरक्षा के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए थे?
उत्तर जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के
लिए हथियार बंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उनकी
नाक तक पहुँच जाए। भारत में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं। जिन नाकों तक लोगों के
हाथ पहुँच गए उन्हें शानो-शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया था।
जॉर्ज पंचम की नाक की रक्षा के लिए गश्त भी लगाई जा रही थी ताकि नाक बची रहे।
प्रश्न 10. रानी के भारत
आगमन से पहले ही सरकारी तंत्र के हाथ-पैर क्यों फूले जा रहे थे?
उत्तर- रानी एलिजाबेथ के भारत आने से
पूर्व ही सुरक्षा के कई उपाय करने पर भी जॉर्ज पंचम की नाक गायब हो गई थी। रानी
आएँ और नाक न हो। यह सरकारी तंत्र के लिए परेशानी खड़ी कर देने वाली बात थी। अब
रानी के भारत आने तक जॉर्ज पंचम की नाक को कैसे ठीक किया जाय कि रानी को जॉर्ज पंचम
की लाट सही सलामत हालत में मिले, इसी चिंता में सरकारी तंत्र के हाथ-पैर फूले जा
रहे थे।
प्रश्न 11. मूर्तिकार ने
भारतीय हुक्मरानों को किस हालत में देखा? उनकी परेशानी
दूर करने के लिए उसने क्या कहा?
उत्तर- जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक अवश्य
होनी चाहिए, यह
तय होते ही एक मूर्तिकार को दिल्ली बुलाया गया। मूर्तिकार ने हुक्मरानों के चेहरे
पर अजीब परेशानी देखी, उदास और कुछ बदहवास हालत में थे। यह देख खुद
मूर्तिकार दुखी हो गया। उनकी परेशानी दूर करने के लिए मूर्तिकार ने कहा, “नाक लग जाएगी
पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी थी? तथा इसके लिए
पत्थर कहाँ से लाया गया था।”
मूल्यपरक प्रश्न
प्रश्न 1. जॉर्ज पंचम की
लाट की नाक लगाने के लिए मूर्तिकार ने अनेक प्रयास किए। उन प्रयासों का उल्लेख
करते हुए बताइए कि आप इनमें से किसे सही मानते हैं और किसे गलत। इससे उसमें किन
मूल्यों का अभाव दिखता है?
उत्तर- जॉर्ज पंचम की लाट की नाक लगाने के
लिए मूर्तिकार सबसे पहले उसी किस्म का पत्थर खोजने के लिए हिंदुस्तान के पहाडी
प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर गया और चप्पा-चप्पा छानने पर भी उसके हाथ
कुछ न लगा। उसके इस प्रयास को मैं सही मानता हूँ क्योंकि उसके द्वारा उठाया गया यह
सार्थक कदम था। मूर्तिकार जब देश के नेताओं की मूर्तियों की नाप लेने निकला और जब
मुंबई, गुजरात, पंजाब, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश
आदि के नेताओं की मूर्तियों की नाप के अलावा वर्ष 1942 में शहीद बच्चों तक की नाकों की
नाप लिया और अंततः सफल न होने पर एक जिंदा नाक लगा दी तो उसका यह कृत्य अत्यंत गलत
लगा क्योंकि एक बुत के लिए जिंदा नाक कितनी विचित्र और लज्जाजनक बात थी। मूर्तिकार
के कृत्य से उसमें दूरदर्शिता, शहीदों के प्रति सम्मान और देश के मान-सम्मान
की रक्षा करने जैसे मूल्यों का अभाव नज़र आता है।
प्रश्न 2. जॉर्ज पंचम की
नाक’ पाठ में देश के विभिन्न भागों के प्रसिद्ध नेताओं, देशभक्तों
और स्वाधीनता सेनानियों को उल्लेख हुआ है। इनके जीवन-चरित्र से आप किन मूल्यों को
अपनाना चाहेंगे?
उत्तर- ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में गांधी
जी, रवींद्र
नाथ टैगोर, लाला
लाजपत राय से लेकर रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे देशभक्तों का
उल्लेख हुआ है। इन शहीदों एवं देशभक्तों ने देश के लिए अपना तन, मन, धन और
सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए नाना प्रकार के कष्ट
सहे। इन नेताओं देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन एवं चरित्र से मैं देश
प्रेम एवं देशभक्ति, देश के स्वाभिमान पर मर-मिटने की भावना, देशभक्तों का
सम्मान, राष्ट्र
के गौरव को सर्वोपरि समझने जैसे मूल्यों को अपनाना चाहूँगा तथा समय पर उचित निर्णय
लेते हुए ऐसा कार्य करूंगा जिससे देश का गौरव बढ़े।